मेरी अना मेरे दुश्मन को ताज़ियाना है
इसी चराग से रौशन गरीब-खाना है ।
मैं इक तरफ हूँ किसी कुंज-ए-कम-नुमाई में
और एक सम्त जहाँ-दारी-ए-जमाना है ।
ये ताएरों की कतारें किधर को जाती हैं
न कोई दाम बिछा है कहीं न दाना है ।
अभी नहीं है मुझे मस्लहत की धूप का खौफ
अभी तो सर पे बगावत का शामियाना है ।
मेरी गजल में रजज़ की है घन-गरज तो क्या
सुखन-वरी भी तो कार-ए-सिपाहियाना है ।
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अना = स्वाभिमान
ताजियाना = चाबुक , कोड़े लगाने की सजा
नुमाई = प्रदर्शन, दिखाना
जहांदारी = शहंशाही
ताएरों = पक्षियों
दाम = जाल
मस्लहत = परामर्श , सलाह
रजज़ = वंश-गौरव
सुखनवरी = शायरी
कार-ए-सिपाहियाना = सिपाहियों की तरह का काम
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