Posted by: PRIYANKAR | अक्टूबर 17, 2006

प्रियंकर की एक प्रेम कविता

  

तुम मेरे मन  का कुतुबनुमा हो

 

भले किसी और की हो जाएं

ये गहरी काली आंखें

वे सितारे मेरी स्मृति के अलाव में

रह-रह कर चमकते रहेंगे जो

उस छोटी-सी मुलाकात में

चमके थे तुम्हारी आंखों में

 

भटकाव के बीहड़ वन में

वे ही होंगे पथ-संकेतक

गहन अंधियारे में

दिशासूचक ध्रुवतारा

तुम मेरे मन का कुतुबनुमा हो

अभौतिक अक्षांसों के

अलौकिक फेरे

संभव नहीं हैं तुम्हारे बिना

 

जीवन लालसा के तट पर

हांफ़ते रहने का नाम नहीं

किंतु अब निर्वाण भी

प्राथमिकता में नहीं है

 

मोक्ष के बदले

रहना चाहता हूं

तुम्हारी स्मृति के अक्षयवट में

पर्णहरित की तरह

 

स्नेह की वह सुनहरी लौ

नहीं चाहता –  नहीं चाहता

वह बेहिसाब उजाला

अब तुम्हें पाने की

कोई आकांक्षा शेष नहीं

 

जगत-जीवन के

कार्य-व्यापार में

प्रेम का तुलनपत्र

अब कौन देखे !

 

अपने अधूरे प्रेम के

जलयान में शांत मन

चला जाना चाहता हूं

विश्वास के उस अपूर्व द्वीप की ओर

जहां मेरी और तुम्हारी कामनाओं

के जीवाश्म विश्राम कर रहे हैं ।

 

*******

 

स्वाधीनता ( शारदीय अंक 2006 ) से साभार

 


प्रतिक्रियाएँ

  1. प्रियंकर जी,

    जल पोत के कपतान के रूप में मैने छ: वर्षों तक काम किय है। मेरा समुद्री जीवन कुछ 15 वर्षों का रहा है। अक्षांश, देशान्तर और कुतुबनुमा मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। समुद्र का खारा पानी लहू बन कर मेरी वह्लि में आज भी दौड़ता है – यह सब इतने रूहानी भी हो सकते हैं यह तो बस आपकी कविता पढ़ कर ही पता चला। मन करता है एक बार फिर मन की पतवार खोल उमंगों की हवाओं से कहूँ – बहा ले चलो वहीं जहाँ अभिव्यक्ति का सागर साँसे ले रहा है।

    प्रशिक्षण पोत ‘राजेन्द्र’ पर नाविक जीवन पर एक गीत सीखा था, आपकी कविता पढ़ कर याद आ गया, कुछ पंक्तियाँ

    We’re on the road, we’re on the road to anywhere,
    with never a heart ache with never a care,
    got no homes,
    got no friends
    and thankful for anything
    the good Lord sends…..

    ***

    …..that the road to anywhere, the road to anywhere
    will lead to somewhere some day
    we’re on the road….

    ये है नाविक जीवन – एकाकी, द्वीप के समान अलग थलग लेकिन फिर मद मस्त, खुश, बिंदास्त और तूफ़ानों में भी आशा का दिया जलाये हुये।

    ….somewhere…someday…..

    बीच बीच में आंग्ल भाषा का प्रयोग किया है क्योंकि यह गीत मूलत: आंग्ल भाषा में है और अनुवाद में भावनायें शायद कहीं गुमनाम सी हो जातीं।

    …मेरे जहाजों की याद दिला दी आपने। धन्यवाद!

  2. कविता उपमानों का बेहद सजीव रूप है,
    काफ़ी सारे नवीन उपमाएं आपकी सृजनता की प्रतीक हैं,
    जैसे- कामनाओं के जीवाश्म, विश्वास के अपूर्व दीप,स्मृति का अक्षय वट…..!!!
    यही कविधर्म है, काव्य में भावनाओं के रोपन सुंदर शिल्प सहित- आप सफ़ल हैं इसमें
    -रेणू

  3. अनुराग जी और रेणु जी ,
    कविता को पढने और प्रशंसात्मक टिप्पणी दर्ज़ करने के लिए आपका आभारी हूं . जब कोई पीठ थपथपाता है तो उत्साह चौगुना हो जाता है .

    अनुराग भाई,
    आप का पत्र पढते-पढते मुझे ऐसा लगा जैसे मैने आपके साथ कोई समुद्री यात्रा की हो . इतना ‘पैशन’ था आपके पत्र में कि मैं यहां कोलकाता में बैठा उस थरथराहट को महसूस कर सकता था . कामना है कि जीवन के तमाम तूफ़ानों के बीच भी आपकी मस्ती,खुशी और बिन्दासपना कायम रहे . आप जिस तरह कविता से जुड़े या जिस तरह आपने कविता को अपने जीवन से जोड़ कर देखा उसने मुझे कहीं बहुत गहरे प्रभावित किया .

  4. aaisa laga ke aap nai mai rai dil ki baat sabdo mai uttar di hai. Hindi mai likanai ki koshish kar raha ho.

  5. बहुत उत्तम भाषा, प्रवाह्मयी रचना, प्रगाढ प्रेम की सूक्ष्म और परिपक्व यादें…साथ ही एक कामना.. प्रेम मय होने की.. बहुत अच्छी लगी..

  6. I am thrilled to open this website. Read some of the poems which have the good literary
    taste. I feel it is my duty to congratulate the editor for his innovative ideas and mainta
    ining literary standard. Congrats once again.

  7. मन को छूने वाली कविता .

  8. NO COMMENTS

  9. Marhaba!

  10. anokha ahsaas …..can not explain…..

  11. Suraj
    kuldip

  12. बहुत अच्छी है

  13. संयोग से ही आपके ब्लॉग तक पहुँच गया, और इतनी मार्मिक कविता पढ़ने का सुख पाया, धन्यवाद…कुछ अपनी सुन पाया इस कविता में

  14. Too nice poem.i like so it.

  15. mai is kavita ko laut laut padhti huun Priyankar ji… KUTUBNUMA shabd kisi
    mantr ki tarah asar kartaa hai

  16. प्रेम और कृतज्ञता की गहरी संवेदना वाली कविता है यह..कुतुबनुमा क्या बात है इस शीर्षक में..
    रहना चाहता हूं

    तुम्हारी स्मृति के अक्षयवट में

    पर्णहरित की तरह…
    कामना और कामना से मुक्ति की चाहत की कविता…

  17. komal ahsaas aur sundar shilp .. man ke bheetar utarte chale jaate hain. shabdo ke font ko kripya thoda bada kar de. sundar.

  18. तुम हो मेरे पास भ्रम है ये मेरा
    पास से गुजरती हवा का झोका
    अंदर तक चुभता है
    दिल भारी हो उठता है तेरे ख्याल से ……
    …………..आपकी कविता अच्छी है ..एक जीवंत है इसमे


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