ग्यारह सितम्बर
॥१॥
अमेरिकी मान बैठे थे —
इतिहास का अंत हो चुका
संस्कृति टीवी के पर्दे में सिमट गई
और प्रतिद्वंद्वी दूसरे ग्रहों से आएंगे
ग्यारह सितम्बर ने बताया —
जिस दुनिया को चाटते रहे हैं
जाहिली,गरीबी और शोषण के दीमक
उसी दुनिया में उन्हें भी रहना है ।
॥२॥
अगर अल्लाह ने
तालिबान की फतह चाही होती
तो क्रूज़ मिसाइलें अमेरिका को देता ?
अगर मुनाफ़ा ही
दुनिया का नियामक रहा होता
तो वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर
रसातल में धंसा होता ?
॥३॥
अफीम अफ़गानिस्तान में उगती है
अमेरिका में खपती है
हथियार अमेरिका में बनते हैं
अफ़गानिस्तान में खपते हैं
ग्यारह सितम्बर
न्यूयॉर्क पहुंचने से पहले
काबुल से गुज़रा था
न्यूयॉर्क में खून
शेयर गिरने से पहले
काबुल से महंगा था ।
॥४॥
बुश जहाज से बम गिराता है
ओसामा बम से जहाज
बुश आज से कल मारता है
ओसामा कल से आज
जैसे आक्रमण और आतंक
परस्पर रक्तबीज हैं
वैसे ट्रेड सेन्टर और तालिबान
भी एक ही चीज़ हैं
जिस तरह वैभव का पहाड़
वंचना की खाई का जनक है
उसी तरह अमेरिकी पूंजी
ही तालिबान की पूरक है ।
॥५॥
ओसामा मर्द बंदा है
पाक रखता है औरत को
घर और बुर्के की बंदिशों से
कुर्बानी उसका धंधा है
भर्ती करता है जेहादी को
सस्ती से सस्ती मंडियों से
बुश समर्थ योद्धा है
बांधे रखता है सारी समृद्धि
अपनी सरहदों में रोक कर
न्याय क्योंकि अंधा है
लेज़र से ढूंढता है शांति
अचूक मिसाइलों की नोक पर ।
॥६॥
क्या तालिबानों को
अमेरिका बन कर ही पीटा जा सकता है
मदरसों और गुफाओं को
मिसाइलों से ही जीता जा सकता है ?
क्या ज्ञान की दुनिया में
अमेरिकी समृद्धि से
पायदान बन कर ही जुड़ा जाएगा
इंसान की दुनिया में
शैतानी बुद्धि से
तालिबान बन कर ही भिड़ा जाएगा ?
॥७॥
तालिबान संसार का रुआंसा बेटा है
अमेरिका मुनाफ़े की खुराक से मोटा है
तालिबान अमेरिका का पूर्वज है
अमेरिका तालिबान का पिता है
दुनिया उनके लिए पुश्तैनी जागीर है
उनमें बांट-बखरे का झगड़ा है ।
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(समकालीन सृजन के धर्म,आतंकवाद और आज़ादी अंक से साभार)
फोटो साभार : एच.पी.ए. साइट
ये हिन्दी है अपनी भाषा …..
By: Nishikant Tiwari on अगस्त 31, 2007
at 8:45 पूर्वाह्न
इस कविता पर फिल हाल सोच ही सकता हूं. टिप्पणी लिखना जल्दबाजी होगी.
कविता आपने उपलब्ध कराई, बहुत धन्यवाद.
By: ज्ञानदत्त पाण्डेय on अगस्त 31, 2007
at 10:19 पूर्वाह्न
Laltu ki kavitayen.
http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2007/08/070831_kavita_laltu.shtml
By: संजय on अगस्त 31, 2007
at 10:31 पूर्वाह्न
हर एक्शन रिएक्शन एक दूसरे जुड़ी हुई है । हर कार्य का संसार पर प्रभाव पड़ता है । जब जब लोगों ने बुश या लादेन का साथ दिया तब तब उसकी कीमत चुकाई । जब जब ॠषि ने चूहे को शेर बनाया शेर बने चूहे ने सबसे पहले अपने को बनाने वाले पर गुर्राया ।
घुघूती बासूती
By: ghughutibasuti on अगस्त 31, 2007
at 12:52 अपराह्न
अरे वाह, बड़ी शानदार कवितायें लिखी हैं भाईजी ने। मजा आ गया। आपको ध्न्यवाद , पढ़वाने के लिये।
By: अनूप शुक्ल on सितम्बर 3, 2007
at 3:25 अपराह्न
सशक्त कविता… आपके मिजाज़ की तरह।
By: Pragya Rawat on सितम्बर 12, 2021
at 3:58 पूर्वाह्न
वी एन राय की ये कविताएं अपने समय के सबसे ज्वलंत मुद्दे पर नुकीली शैली में विश्लेषण करते हुए सवाल भी उठाती हैं और पूंजीवाद के प्रतीक अमेरिका की नीति और नीयत को कठघरे में भी खड़ा करती हैं।
By: Ashok Bhatia on सितम्बर 15, 2021
at 5:20 पूर्वाह्न