भारतत्व
गांवों में समाजवाद, शहरों में पूंजीवाद, दफ़्तर में सामन्तवाद
घर में अधिनायकत्व है
कभी-कभी लगता है
यही भारतत्व है ।
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भारतत्व
गांवों में समाजवाद, शहरों में पूंजीवाद, दफ़्तर में सामन्तवाद
घर में अधिनायकत्व है
कभी-कभी लगता है
यही भारतत्व है ।
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बिना श्रेणी में प्रकाशित किया गया
बहुत सही!!!
शानदार!!
By: Sanjeet Tripathi on सितम्बर 3, 2007
at 9:33 पूर्वाह्न
भारत जी अपने तरह से अद्भुत व्यंग करते थे। दुख की बात है कि लोग उनके नाम पर मिला
पुरस्कार तो रख लेते हैं उनकी चर्चा नहीं करते।
By: बोधिसत्व on सितम्बर 3, 2007
at 12:01 अपराह्न
सही है। आपने कविता पर लिखना अभी तक शुरू नहीं किया ! 🙂
By: अनूप शुक्ल on सितम्बर 3, 2007
at 3:20 अपराह्न
एक बढिया रचना प्रेषित की है।बधाई।
By: paramjitbali on सितम्बर 3, 2007
at 5:20 अपराह्न
अनूप जी
मैं भारत जी पर कापी कुछ लिख चुका हूँ। मेरा शोध प्रबंध तार सप्तक पर है। जिसमें हर कवि पर
कई-कई पेज हैं। वैसे मैंने अलग से भी लिखा है। कभी यहाँ भी कुछ छापूंगा।
By: बोधिसत्व on सितम्बर 3, 2007
at 5:39 अपराह्न
यह तो हमारी परम्परा है. हमारे देवता तीन-चार-पांच या छ मुख वाले होते हैं. वे सभी मुख अलग स्थिति में अलग वाद का प्रयोग करते हैं. समग्रता में वे सभी भारत का प्रतीक हैं.
By: Gyandutt Pandey on सितम्बर 3, 2007
at 6:08 अपराह्न
शानदार…कविता…अच्छा लगा ….बधाई
By: reetesh gupta on सितम्बर 4, 2007
at 12:15 अपराह्न