मैं तो कविता लिखता हूं
मैं जब कविता लिखता हूं
तो भूख को भूख लिखता हूं
विचार या विचारधारा नहीं लिखता
मैं जब कविता लिखता हूं
और कविता में तितली लिखता हूं
तो तितली को तितली लिखता हूं
विचार या विचारधारा नहीं लिखता
मैं जब कविता लिखता हूं
और कविता में स्त्री लिखता हूं
तो स्त्री को स्त्री लिखता हूं
विचार या विचारधारा नहीं लिखता
विचार या विचारधारा के बारे में
महासचिव प्रगतिशील लेखक संघ और
महासचिव जनवादी लेखक संघ से बातें करें
मैं तो कविता लिखता हूं ।
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( समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार )
मै अभी लिखना सीख रहा हूँ,
क्या लिखुंगा पता नहीं,
पर
बुद्धीजीवी बनने की मेरी कोई चाह नहीं.
शायद मैं भी सीख जाऊँ
लिखना
एक कविता.
By: kakesh on जुलाई 23, 2007
at 11:21 पूर्वाह्न
सम्माननीय सोंच दुबे जी, कविता ही लिखा है
By: Sanjeeva Tiwari on जुलाई 23, 2007
at 11:26 पूर्वाह्न
बढिया लिखा है\
By: paramjitbali on जुलाई 23, 2007
at 12:19 अपराह्न
जस का तस लिखना ही कविता है
जब विचार पर लिखें कविता
तो विचार को विचार ही लिखें
सम्भूनथवा की मड़ई नहीं
तब सम्भूनथवा की मड़ई के लिये
महासचिव प्रगतिशील लेखक संघ और
महासचिव जनवादी लेखक संघ से बातें करें! 🙂
ये लोग जस का तस लिखने में यकीन नहीं करते.
By: ज्ञानदत्त पाण्डेय on जुलाई 23, 2007
at 12:23 अपराह्न
सच कविता ही तो है.. विचार तो खुद बनते हैं.. लिखते तो हम शायद कविता ही हैं..जैसे इस कविता ने कई विचार ला दिय मन में..स्त्री, तितली, भूख..
By: manya on जुलाई 23, 2007
at 6:24 अपराह्न
sundar rachana. saral shabdo mein gehri bat
By: hemjyotsana parashar on जुलाई 24, 2007
at 9:20 पूर्वाह्न