अनूप मुखर्जी की दो बांग्ला कविताएं
(बांग्ला से अनुवाद : प्रियंकर)
१.
प्रणाम करो………
प्रणाम करो रात्रि को
यही शुभ है
प्रणाम करो अंधकार को
यही आवरण है
प्रणाम करो अश्रु को
यही स्वेद है
प्रणाम करो मिट्टी को
यही देह है
प्रणाम करो जीवन को
यही आसक्ति है
प्रणाम करो मृत्यु को
यही आरम्भ है……..
२.
किसका देश कैसा प्रेम
किसका देश कैसा प्रेम
सब मिल के खाएं
प्रेम-पखेरू हुआ उड़नछू
तूतू मैंमैं गाएं
जाते हैं, जाएं
जहन्नुम में
संग में राम-सीता
नरक घूम कर
बिछा दूंगा
शैतान के आगे गीता ।
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अदभुत तथा बेहतरीन !!
विवेक
By: विवेक गुप्ता on मई 1, 2007
at 6:22 अपराह्न
अनुदित रूप में काफ़ी मजबूत हैं । साधुवाद ।
By: अफ़लातून on मई 2, 2007
at 6:21 पूर्वाह्न
गोइंठे में पककर तैयार हुआ चोखा है.. अनोखा है..
By: प्रमोद सिंह on मई 2, 2007
at 9:17 पूर्वाह्न