श्रीकांत वर्मा की एक कविता
कोसल में विचारों की कमी है
महाराज बधाई हो; महाराज की जय हो !
युद्ध नहीं हुआ —
लौट गये शत्रु ।
वैसे हमारी तैयारी पूरी थी !
चार अक्षौहिणी थीं सेनाएं
दस सहस्र अश्व
लगभग इतने ही हाथी ।
कोई कसर न थी ।
युद्ध होता भी तो
नतीजा यही होता ।
न उनके पास अस्त्र थे
न अश्व
न हाथी
युद्ध हो भी कैसे सकता था !
निहत्थे थे वे ।
उनमें से हरेक अकेला था
और हरेक यह कहता था
प्रत्येक अकेला होता है !
जो भी हो
जय यह आपकी है ।
बधाई हो !
राजसूय पूरा हुआ
आप चक्रवर्ती हुए —
वे सिर्फ़ कुछ प्रश्न छोड़ गये हैं
जैसे कि यह —
कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता
कोसल में विचारों की कमी है ।
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पता नहीं कविता किस सन्दर्भ में है. पर मुझे लगता है कि युद्ध (बाहरी या आन्तरिक) सेना की अकुशलता से नहीं, विचारों की बदहाली से हारे जाते हैं.
By: ज्ञानदत्त पाण्डेय on सितम्बर 18, 2007
at 5:50 अपराह्न
कोशल में विचारों की आवश्यकता किसे है प्रियंकर भाई।
कोशन बिना विचार के ही दौड़ रहा है ।
By: बोधिसत्व on सितम्बर 19, 2007
at 10:50 पूर्वाह्न
बोधिसत्व के प्रश्नों का उत्तर दें
By: दीपक श्रीवास्तव on सितम्बर 19, 2007
at 1:39 अपराह्न