अष्टभुजा शुक्ल का एक पद
कविजन खोज रहे अमराई ।
कविजन खोज रहे अमराई ।
जनता मरे , मिटे या डूबे इनने ख्याति कमाई ॥
शब्दों का माठा मथ-मथकर कविता को खट्टाते ।
और प्रशंसा के मक्खन कवि चाट-चाट रह जाते ॥
सोख रहीं गहरी मुषकैलें, डांड़ हो रहा पानी ।
गेहूं के पौधे मुरझाते , हैं अधबीच जवानी ॥
बचा-खुचा भी चर लेते हैं , नीलगाय के झुंड ।
ऊपर से हगनी-मुतनी में , खेत बन रहे कुंड ॥
कुहरे में रोता है सूरज केवल आंसू-आंसू ।
कविजन उसे रक्त कह-कहकर लिखते कविता धांसू ॥
बाली सरक रही सपने में , है बंहोर के नीचे ।
लगे गुदगुदी मानो हमने रति की चोली फींचे ॥
जागो तो सिर धुन पछताओ , हाय-हाय कर चीखो ।
अष्टभुजा पद क्यों करते हो कविता करना सीखो ॥
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( उन्नयन काव्य पुस्तिका : 1 ‘पद-कुपद’ से साभार )
सुंदर बस इतना ही कहूँगा…….
By: anurag arya on मई 30, 2008
at 7:04 पूर्वाह्न
अष्टभुजा पद क्यों करते हो कविता करना सीखो
बहुत बढ़िया…
By: Shiv Kumar Mishra on मई 30, 2008
at 7:43 पूर्वाह्न
ब्लॉग जगत तो इसी पर अमल कर रहा है। यत्र-तत्र-सर्वत्र कविता ही ठिल रही है। धुंआधार!
By: Gyan Dutt Pandey on मई 30, 2008
at 8:00 पूर्वाह्न
प्रियंकर ने इत्ती अच्छी कविता पढ़ाई
सडि़यल गर्मी में जैसे हमें मिली अमराई
शोरगुल के सुंदर है अनहद नाद का काम
फोड़म फोड़ के बीच यहां पर हमको मिलता है आराम
By: yunus on मई 30, 2008
at 8:07 पूर्वाह्न
वाह प्रियंकर भाई
कविता खूब सुनाई
ब्लोग्गिंग के कीचड में जैसे
नीरज* दिया दिखाई”
*नीरज याने कमल का फूल…इसे मेरे सन्दर्भ में ना लें.
नीरज
By: neeraj1950 on मई 30, 2008
at 11:46 पूर्वाह्न
जय हो. भय हो.
By: प्रमोद सिंह on मई 30, 2008
at 12:08 अपराह्न
बढ़िया भाव ….सुंदर अभिव्यक्ति …बधाई
By: reetesh gupta on मई 30, 2008
at 5:11 अपराह्न
अच्छी और सच्ची कविता.
और क्या कहूँ?
By: balkishan on मई 30, 2008
at 5:28 अपराह्न
कविता करना सीखो।
दमदार है।
By: दिनेशराय द्विवेदी on मई 30, 2008
at 8:04 अपराह्न
गजब. उम्दा-वाह जी.
By: समीर लाल on मई 31, 2008
at 2:08 पूर्वाह्न
लगता है कि भाई अष्टभुजा शुक्ल जीवन समझना ही नहीं चाहते… अगर उनकी कसौटी पर कसा जायेगा तो शमशेर भी अमराई ढूँढते नज़र आयेंगे! वैसे कविता के बारे में इस दौर में इतना व्यंग्यात्मक होने की जरूरत समझ में नहीं आती. शायद कोई श्रेष्ठता की कवायद बाकी रह गयी हो!
By: vijayshankar chaturvedi on जून 7, 2008
at 8:15 अपराह्न
करारा तमाचा !
By: dinesh dubey on फ़रवरी 20, 2016
at 6:47 पूर्वाह्न