ऋतुराज की एक कविता
जब एक दिन हांग्जो* शहर की सुंदर लड़की का बटुआ चोरी हो गया
कभी इतनी धनवान मत बनना कि लूट ली जाओ
सस्ते स्कर्ट की प्रकट भव्यता के कारण
हांग्जो की गुड़िया के पीछे वह आया होगा
चुपचाप बाईं जेब से केवल दो अंगुलियों की कलाकारी से
बटुआ पार कर लिया होगा
सुंदरता के बारे में उसका ज्ञान मात्र वित्तीय था
एक लड़की का स्पर्श क्या होता है वह बिलकुल भूल चुका था
एक नितांत अपरिचित जेब में अगर उसे जूड़े का पिन
या बुंदे जैसी स्वप्निल-सी वस्तुएं मिलतीं तो वह निराश हो जाता
और तब हांग्जो की लड़कियों के गालों की लालिमा भी
उसे पुनर्जीवित नहीं कर सकती थी
उस वक्त वह मात्र एक औजार था बाज़ार व्यवस्था का
खुले द्वार जैसी जेब में जिसे उसकी तेज निगाहों ने झांककर देखा था
कि एक भोली रूपसी की अलमस्त इच्छाएं उस बटुए में भरी थीं
कि बिना किसी हिंसा के उसने साबित कर दिया
सुंदर होने का मतलब लापरवाह होना नहीं है
कि अगर लक्ष्य तय हो तो कोई दूसरा आकर्षण तुम्हें डिगा नहीं सकता ।
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* दक्षिण चीन के चच्यांग प्रांत का अत्यंत एक प्रसिद्ध शहर जहां की लड़कियों की सुंदरता जगत-प्रसिद्ध है, खासतौर पर उनके मुखमंडल की लालिमा .
(समकालीन सृजन के ‘यात्राओं का जिक्र’ अंक से साभार)
वाह, कुशल जेबकतरा हो या तपस्वी महर्षि, लक्ष्य के प्रति वही एक-टक साधना चाहिये।
प्रियंकर जी, जेबकतरा को भी गुरू माना जा सकता है!
By: gyandutt pandey on जून 27, 2008
at 9:36 पूर्वाह्न
सघन कविता.
‘कि एक भोली रूपसी की अलमस्त इच्छाएं उस बटुए में भरी थीं
कि बिना किसी हिंसा के उसने साबित कर दिया
सुंदर होने का मतलब लापरवाह होना नहीं है’
क्या पंक्तियाँ हैं भाई! कमाल ही है!
By: vijayshankar chaturvedi on जून 27, 2008
at 2:06 अपराह्न
कविता का ये भी रूप होता है? मेरे पास शब्द नहीं हैं। चमत्कारिक कविता है… धन्यवाद।
शुभम।
By: महेन on जून 27, 2008
at 9:46 अपराह्न
अद्भुत!! जबरदस्त!! आऊट ऑफ वर्ल्ड ..गजब!!
By: समीर लाल on जून 28, 2008
at 2:19 पूर्वाह्न
nice man, i really enjoy this keep it up thanks
By: Mukesh choudhary on अप्रैल 26, 2009
at 3:21 अपराह्न
great……great formation of emotions and wording,that touch heart in depth.
By: sampoorna pokhriyal on मई 23, 2009
at 9:12 पूर्वाह्न