Posted by: PRIYANKAR | जुलाई 15, 2008

सब जान लेगी वह

गगन गिल की एक कविता

 

एक दिन सब

 

सब जान लेगी वह

तुम्हारे बारे में

अपने तप से एक दिन

 

सुन लेगी सब बातें

तुम्हारे चीवर और

देह के बीच

 

पता चल जाएगा उसे

तुरंत

किस देश की

कौन सड़क पर

चलते हुए

अभी-अभी कांपा था

तुम्हारा पांव

 

कितने बजे थे घड़ी में उस दिन

जब चला था एक

बुलबुला कहीं से

और फूट गया था

आकर

तुम्हारे हृदय में

 

कितने अंश का कोण

बन रहा था

जमीन पर

तुम्हारे हाथ की छाया का

जब आईने के सामने खड़े

धकेला था पीछे

तुमने पीड़ा की लहर को

 

उससे कुछ भी नहीं छिपेगा

हालांकि

वह कहीं नहीं होगी

 

सब मालूम होगा उसे

नींद आने के कितने क्षण बाद

तुम डूब जाते हो

फिर आते हो सतह पर

मांगते बुद्ध से शरण

नीम-बेहोशी में

 

कोई उसे

बताएगा नहीं

पूछने नहीं जाएगी

वह किसी से

 

उसकी जान का आतिशी कांच

जल रहा है जो

धू-धू

इतने दिनों से

 

साफ़ दीखता होगा

उसमें

सब ।

 

******

( नंदकिशोर नवल और संजय शांडिल्य द्वारा सम्पादित कविताओं के संकलन ‘संधि-वेला’ से साभार )


Responses

  1. सुंदर ….बेहद सुंदर

  2. vaah!!

  3. बेहद सुन्दर रचना। बधाई स्वीकारें।

  4. बहुत खूब

  5. Aapke blog par aana achha laga.

  6. इसे पढ़वाने के लिए शुक्रिया ….बेहद पठनीय रचना है…….

  7. कोई यह बताये कि अपने व्यक्तित्व का एक हिस्सा सबसे छिपा कर रखने का तरीका क्या है।
    वह जो किसी भी तप से न जान पाये वह?!

  8. सुन्दर रचना।

  9. priyankar ji namaskar bhai kaise hain aap .ye kavita bahut acchi lagi. badhai svikaar kren.

  10. bahut hi sundar rachna.man ko baandh liya shabd aur bhaav ne.aabhaar.


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