असद ज़ैदी की एक कविता
संस्कार
बीच के किसी स्टेशन पर
दोने में पूड़ी-साग खाते हुए
आप छिपाते हैं अपना रोना
जो अचानक शुरू होता है
पेट की मरोड़ की तरह
और फिर छिपाकर फेंक देते हैं कहीं कोने में
अपना दोना।
सोचते हैं : मुझे एक स्त्री ने जन्म दिया था
मैं यों ही दरवाज़े से निकलकर नहीं चला आया था।
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बहुत ऊंची संवेदना वाला कवि ही साग -पूड़ी़ से शुरू कर के इस कदर ऊंची उड़ान भर सकता है:
…मुझे एक स्त्री ने जन्म दिया था
मैं यों ही दरवाज़े से निकलकर नहीं चला आया था.
शुक्रिया प्रियंकर जी एक और अच्छी कविता अपने यहां प्रस्तुत करने का. कोशिश कर रहा हूं अनहद का लिंक कबाड़ख़ाने में लगाने की.
शुभम!
By: अशोक पांडे on जुलाई 16, 2008
at 8:17 पूर्वाह्न
ये तो अच्छे कवि हैं
तारों के बीच में रवि हैं
वैसे, क्या ये वही हैं?
मोहल्ला वाले?
हो-हल्ला वाले?
हाँ, वही तो हैं
असद ज़ैदी
पिछले पाँच-छ दिनों से
बन गए हैं कैदी
हर असद की यही अवस्था है
क्या करें
उस ब्लॉग की ऐसी ही व्यवस्था है
By: असद प्रेमी on जुलाई 16, 2008
at 8:38 पूर्वाह्न
यह कविता इस वक़्त की जरूरत थी, इसके लिए बहुत धन्यवाद प्रियंकर जी….. और यह टिप्पणी आपसे यह कहने के लिए भी कि ब्लॉग पर गंभीर कविताएं पढ़ने लिखने वाले भी हैं। कुछ लोगों की वज़ह से हताश हो जाना शायद ठीक नहीं होगा।
By: ग़ौरव सोलंकी on जुलाई 16, 2008
at 9:57 पूर्वाह्न
बहुत सटीक लिखा है।
By: ritu bansal on जुलाई 16, 2008
at 11:19 पूर्वाह्न
‘मुझे एक स्त्री ने जन्म दिया था
मैं यों ही दरवाज़े से निकलकर नहीं चला आया था.’
कमाल की लाइन है.
आज पहली बार इधर आना हुआ, बहुत अच्छा ब्लॉग है आपका… बधाई. अब तो आना होता रहेगा.
By: Abhishek on जुलाई 16, 2008
at 11:23 पूर्वाह्न
असद जैदी वाकई कवि हैं। जिन की कविता उन के दिल से स्वतस्फूर्त निकलती है। बस कोई संवेदना उन्हें छू भर दे। वे कविता लिखने के लिए कविता नहीं लिखते।
By: दिनेशराय द्विवेदी on जुलाई 16, 2008
at 2:40 अपराह्न
टिप्पणियों में कुछ विवाद की गंध है। अब क्या लिखें।
By: Gyan Dutt Pandey on जुलाई 16, 2008
at 3:33 अपराह्न