सहज-सुदर्शन युवा कवि नीलकमल का पहला कविता-संग्रह ’हाथ सुंदर लगते हैं’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है . उन्हें बहुत-बहुत बधाई ! यानी ’एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ’ . शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है इसी संग्रह से उनकी एक कविता :
पोखरण-2
बुद्ध चौबीस वर्षों के बाद
फिर हंसे
पांच ठहाकों ने फेर दीं
दुनिया की नज़रें
सारनाथ की वह सभा
पीढ़ियों बाद अपने उपदेशक से
जानना चाहती है
बोधिवृक्ष की जड़ें कहां हैं ?
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बोधिवृक्ष की जड़े कहां हैं?
बेहतरीन कुछ शब्द….बेनकाब करती कविता….
By: रवि कुमार, रावतभाटा on सितम्बर 19, 2010
at 1:02 अपराह्न
यक़ीनन….लापता है
By: dr.anurag on सितम्बर 19, 2010
at 1:16 अपराह्न
हालात तो ये हैं कि-
बोधिवृक्ष की जड़ें तो बोधिसत्व को पहले ही ले जानी पड़ी थीं जब शशांक जैसे तानाशाह बौध भिक्षुओं के कत्ल का हुक्म दे रहे थे।
पाँच ठहाके न भी लगते तो भी कौन बुद्धं शरणम गच्छामि गाते हुये साधनारत रहता?
By: स्वार्थ on सितम्बर 21, 2010
at 1:00 पूर्वाह्न
अपने देखे तो उपदेशक भी भारत से सदियों से पूछ रहे हैं कि क्या किया तुमने मेरे संदेश के साथ?
क्या यह भूमि इस लायक बची है कि सिद्धार्थ गौतम के बाद किसी और को बुद्ध बना सके?
By: स्वार्थ on सितम्बर 21, 2010
at 1:06 पूर्वाह्न
बहुत अच्छी कविता…. नील कमल जी को बधाई… प्रियंकर भाई आपका आभार…
By: विमलेश त्रिपाठी on सितम्बर 28, 2010
at 5:54 पूर्वाह्न