Posted by: PRIYANKAR | फ़रवरी 13, 2007

नीलेश रघुवंशी की कविता

जंगल और जड़

 

इमारत के ऊपर इमारत

खाई के नीचे खाई

दूर-दूर तक फैला कंक्रीट का जंगल

 

आएगा एक दिन ऐसा आएगा

जब हमें हमारी जमीन मिलेगी वापस

सीमेंट की टंकी में पानी पीती चिड़िया से

कहा पीपल की फूटती जड़ ने।

 

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(समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार)


प्रतिक्रियाएँ

  1. बहुत सुन्दर । कवित तक बधाई पहुँचे ।

  2. सुन्दर!
    घुघूती बासूती

  3. सीधी साधी सुंदर कविता !

  4. वाह!

  5. समकालीन कविता!! अत्यंत सुंदर और खरा!!बधाई।

  6. यह है ‘साइकिल’ पूरी होने की बात! हर एक का जीवन चक्र होता है! वाह!

  7. great, lets hope this comes i our life span

  8. great, lets hope this comes in our life span


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