जंगल और जड़
इमारत के ऊपर इमारत
खाई के नीचे खाई
दूर-दूर तक फैला कंक्रीट का जंगल
आएगा एक दिन ऐसा आएगा
जब हमें हमारी जमीन मिलेगी वापस
सीमेंट की टंकी में पानी पीती चिड़िया से
कहा पीपल की फूटती जड़ ने।
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(समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार)
बहुत सुन्दर । कवित तक बधाई पहुँचे ।
By: अफ़लातून on फ़रवरी 13, 2007
at 11:15 पूर्वाह्न
सुन्दर!
घुघूती बासूती
By: ghughutibasuti on फ़रवरी 13, 2007
at 11:33 पूर्वाह्न
सीधी साधी सुंदर कविता !
By: अनुराग on फ़रवरी 13, 2007
at 12:23 अपराह्न
वाह!
By: सुनील on फ़रवरी 13, 2007
at 12:54 अपराह्न
समकालीन कविता!! अत्यंत सुंदर और खरा!!बधाई।
By: Divyabh on फ़रवरी 13, 2007
at 8:00 अपराह्न
यह है ‘साइकिल’ पूरी होने की बात! हर एक का जीवन चक्र होता है! वाह!
By: अनूप शुक्ला on फ़रवरी 14, 2007
at 2:00 पूर्वाह्न
great, lets hope this comes i our life span
By: nisha on फ़रवरी 15, 2007
at 5:39 पूर्वाह्न
great, lets hope this comes in our life span
By: nisha on फ़रवरी 15, 2007
at 5:42 पूर्वाह्न