सुंदर चंद ठाकुर की एक कविता
हिंदी में
हिंदी में नहीं रहा
शब्द से रोटी मांगने का रिवाज
शब्द यहां भूख है
दीवानगी है
कैद भी और निर्वाण भी
शब्द हाशिए पर लड़ाई है
जो लड़ी जाती है
अंतहीन युद्ध की तरह
और याद रहे आपकी शहादत पर
न आंसू बहाए जाते हैं
न तालियां बजाई जाती हैं ।
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( समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार )
वाह, शहादत पर न सही, पर इस कविता पर तो ताली बजाने का मन कर रहा है।
By: सृजन शिल्पी on अप्रैल 2, 2007
at 5:32 अपराह्न
बढ़िया है.
By: समीर लाल on अप्रैल 2, 2007
at 6:18 अपराह्न
अच्छी है कविता!
By: अनूप शुक्ला on अप्रैल 3, 2007
at 2:36 पूर्वाह्न
अंतहीन युद्ध के सहयात्री – जिन्दाबाद ।
By: afloo on अप्रैल 3, 2007
at 6:54 पूर्वाह्न
कविता बहुत अच्छी लगी .
By: रजनी भार्गव on अप्रैल 3, 2007
at 12:00 अपराह्न
//शब्द हाशिए पर लड़ाई है
जो लड़ी जाती है
अंतहीन युद्ध की तरह//
ये पन्क्तियाँ बहुत पसँद आई!
By: Rachana on अप्रैल 4, 2007
at 8:48 पूर्वाह्न