एकांत श्रीवास्तव की एक कविता
रास्ता काटना
भाई जब काम पर निकलते हैं
तब उनका रास्ता काटती हैं बहनें
बेटियाँ रास्ता काटती हैं
काम पर जाते पिताओं का
शुभ होता है स्त्रियों का यों रास्ता काटना
सूर्य जब पूरब से निकलता होगा
तो नीहारिकाएँ काटती होंगी उसका रास्ता
ऋतुएँ बार-बार काटती हैं
इस धरती का रास्ता
कि वह सदाबहार रहे
पानी गिरता है मूसलाधार
अगर घटाएँ काट लें सूखे प्रदेश का रास्ता
जिनका कोई नहीं है
इस दुनिया में
हवाएँ उनका रास्ता काटती हैं
शुभ हों उन सबकी यात्राएं भी
जिनका रास्ता किसी ने नहीं काटा ।
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जब एकांत बंबई आए थे और मैंने उनका इंटरव्यू किया था तक उन्होंने ये कविता हमारे लिए पढ़ी थी ।
हम धन्य धन्य हो गये थे ।
बहुत अच्छी और जरूरी कविता
By: यूनुस on अगस्त 1, 2008
at 2:32 अपराह्न
सुंदर कविता।
By: दिनेशराय द्विवेदी on अगस्त 1, 2008
at 3:03 अपराह्न
शुभ हों उन सबकी यात्राएं भी
जिनका रास्ता किसी ने नहीं काटा ।
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शुभ हों वे यात्रायें, जिनमें कांटों ने रास्ता काटा!
और हम तो कांटों को बिछा-बिछा कर चल रहे हैं यात्रा पर। इसको क्या कामना करें?
By: Gyan Dutt Pandey on अगस्त 1, 2008
at 4:17 अपराह्न
बढ़िया कविता छांट के लगाई आपने प्रियंकर जी. शुक्रिया पहले कवि का उस के बाद आप का.
By: अशोक पांडे on अगस्त 2, 2008
at 1:06 अपराह्न
मार्मिक। कविता से दूर जाते पाठकों को इसी तरह की कविता पढ़वाकर पास बुलाया जा सकता है।
By: रवींद्र व्यास on अगस्त 5, 2008
at 1:31 अपराह्न