विष्णु नागर की एक कविता
मां सब कुछ कर सकती है
मां सब कुछ कर सकती है
रात-रात भर बिना पलक झपकाए जाग सकती है
पूरा-पूरा दिन घर में खट सकती है
धरती से ज्यादा धैर्य रख सकती है
बर्फ़ से तेजी से पिघल सकती है
हिरणी से ज्यादा तेज दौड़कर खुद को भी चकित कर सकती है
आग में कूद सकती है
तैरती रह सकती है समुद्रों में
देश-परदेश शहर-गांव झुग्गी-झोंपड़ी सड़क पर भी रह सकती है
वह शेरनी से ज्यादा खतरनाक
लोहे से ज्यादा कठोर सिद्ध हो सकती है
वह उत्तरी ध्रुव से ज्यादा ठंडी और
रोटी से ज्यादा मुलायम साबित हो सकती है
वह तेल से भी ज्यादा देर तक खौलती रह सकती है
चट्टान से भी ज्यादा मजबूत साबित हो सकती है
वह फांद सकती है ऊंची-से-ऊंची दीवारें
बिल्ली की तरह झपट्टा मार सकती है
वह फूस पर लेटकर महलों में रहने का सुख भोग सकती है
वह फुदक सकती है चिड़िया की मानिंद
जीवन बचाने के लिए वह कहीं से कुछ भी चुरा सकती है
किसी के भी पास जाकर वह गिड़गिड़ा सकती है
तलवार की धार पर दौड़ सकती है वह लहुलुहान हुए बिना
वह देर तक जल सकती है राख हुए बगैर
वह बुझ सकती है पानी के बिना
वह सब कुछ कर सकती है इसका यह मतलब नहीं
कि उससे सब कुछ करवा लेना चाहिए
उसे इस्तेमाल करनेवालों को गच्चा देना भी खूब आता है
और यह काम वह चेहरे से बिना कुछ कहे कर सकती है।
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( समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार )
अत्यन्त सशक्त रचना । पढ़वाने के लिए धन्यवाद ।
By: अफ़लातून on अप्रैल 16, 2007
at 9:02 पूर्वाह्न
बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद!!
By: समीर लाल on अप्रैल 16, 2007
at 9:31 पूर्वाह्न
🙂
By: ghughutibasuti on अप्रैल 16, 2007
at 10:19 पूर्वाह्न
माँ की अच्छाईयों का नाजायज फायदा तो नहीं उठाना चाहिए । पर गच्चा देने वाला शब्द माँ के लिए पता नहीं क्यूँ उतना अच्छा नहीं लगा ।
By: मनीष on अप्रैल 16, 2007
at 4:35 अपराह्न
रचना पढकर बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद!!
By: pryas on अप्रैल 17, 2007
at 4:23 पूर्वाह्न
“वह सब कुछ कर सकती है इसका यह मतलब नहीं
कि उससे सब कुछ करवा लेना चाहिए
उसे इस्तेमाल करनेवालों को गच्चा देना भी खूब आता है
और यह काम वह चेहरे से बिना कुछ कहे कर सकती है।”
बस यहां आकर मां कुछ आधुनिक हो गई है. पर उसमें गलत नहीं है. गऊ जैसे निरीह को भी भगवान ने सींग दिये हैं. वो केवल दिखाने के होते तो भगवान बनाते ही क्यों?
By: ज्ञानदत्त पाण्डेय on अप्रैल 17, 2007
at 7:46 पूर्वाह्न
Bahut hi sadharan aur trash kavita dali hai aapne. Stri ko is roop mein dikha kar hi aaj tak use dhokhe mein rakh paya hai apka purushtantrik samaj. Chodiye yeh sab dagabaji aur eploitation. Chale aiye uske sath, tab pata chalega dhaak ke kitne paat. Apka singhasan kheench ne ko tayar hain hum sub.
By: nisha on अप्रैल 17, 2007
at 11:18 पूर्वाह्न
इसीलिए तो नागर जी सबसे अनूठे हैं..
By: धीरेश सैनी on मार्च 20, 2009
at 11:07 पूर्वाह्न