Posted by: PRIYANKAR | मई 16, 2007

सत्य को लिया सत्य की तरह

मनीषा झा की एक कविता

 

 

 

सत्य को लिया सत्य की तरह

 

मैंने हवा को कहा हवा

तो वह नाराज़ हो गई

उसे अपना प्राण क्यों नहीं कहा

 

आखिर हर हवा को नहीं

भरा जा सकता अपनी सांसों में

 

पानी को लिया पानी की तरह ही

वह मेरे  पूरे वजूद में था

दो आंखों से लेकर

असंख्य रोमछिद्रों तक

पानी मन और आत्मा में  भी रहता था

 

खून,  खून है और पानी,  पानी

दोनों में अंतर है

जो अपनी जगह कायम है

 

मिट्टी , शरीर हो सकता है

मन और आत्मा नहीं

मन की दुनिया अलग होती है

वह विचरती है मिट्टी की दुनिया में

आत्मा की गति अलग होती है

मिट्टी की गति से

 

मैंने सत्य को लिया

सत्य की तरह ही

वजह यही है  कभी

प्रिय न हो सकी ।

 

************

 

( युवा कवयित्री मनीषा झा उत्तर बंग विश्वविद्यालय,राजा राममोहनपुर{दार्जीलिंग}  में व्याख्याता हैं )


Responses

  1. अच्छी रचना है।

  2. साधुवाद प्रेषित करे ,मनीषा जी को ।

  3. this is an ultimate poem….!!! काफी उंची सोंच है मनीषा जी की…एक दार्शनिक अभिव्यक्ति…।

  4. अद्भुत रचना.
    ”मैंने सत्य को लिया
    सत्य की तरह ही
    वजह यही है कभी
    प्रिय न हो सकी”

    रहस्यदर्शी.. अद्भुत रचना. लेखिका मनीषा झा जी को बधाई.

  5. मैंने सत्य को लिया

    सत्य की तरह ही

    वजह यही है कभी

    प्रिय न हो सकी ।

    क्या बात …अति सुंदर ….धन्यवाद

  6. बहुत सुन्दर!!

  7. badhiyaa bahut badhiyaa…sahi he…bahut sahi


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