Posted by: PRIYANKAR | मई 28, 2007

राजधानी में बैल – 4

उदय प्रकाश 

उदयप्रकाश की कविता

 

राजधानी में बैल – ४

 

पेसिफ़िक मॉल के ठीक सामने

सड़क के बीचोंबीच खड़ा है देर से

वह चितकबरा

 

उसकी अधमुंदी आंखों में निस्पृहता है अज़ब

किसी संत की

या फ़िर किसी ड्रग-एडिक्ट की

 

तीखे शोर , तेज़ रफ़्तार , आपाधापी  और उन्माद में

उसके दोनों ओर चलता रहता है

अनंत ट्रैफ़िक

 

घंटों से वह वहीं खड़ा है चुपचाप

मोहनजोदाड़ो की मुहर में उत्कीर्ण

इतिहास से पहले का वृषभ

या काठमांडू का नांदी

 

कभी-कभी बस वह अपनी गर्दन हिलाता है

किसी मक्खी के बैठने पर

 

उसके सींगों पर टिकी नगर सभ्यता कांपती है

उसके सींगों पर टिका आकाश थोड़ा-सा डगमगाता है

 

उसकी स्मृतियों में अभी तक हैं खेत

अपनी स्मृतियों की घास को चबाते हुए

उसके जबड़े से बाहर कभी-कभी टपकता है समय

झाग की तरह ।

 

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( समकालीन सृजन के ‘कविता इस समय’ अंक से साभार )

 

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कवि का फोटो इरफ़ान के ब्लॉग टूटी हुई बिखरी हुई से साभार

 


प्रतिक्रियाएँ

  1. वाह रे कवि…!
    वृषभ को काव्य का नायक बना दिया।
    मनमोहक कविता है। बधाई

  2. अच्छी है.. यह बैल सिर्फ राजधानी में ही क्यों है ???

  3. रचना अच्छी है. बधाई!!

    काकेश भाई

    बैल हर जगह होते हैं मगर राजधानी वाले जिक्रशुदा होने की काबिलियत पा लेते हैं. 🙂

  4. […] पेसिफ़िक मॉल के ठीक सामनेसड़क के बीचोंबीच खड़ा है देर सेवह चितकबराउसकी अधमुंदी आंखों में निस्पृहता है अज़बकिसी संत कीया फ़िर किसी ड्रग-एडिक्ट कीतीखे शोर , तेज़ रफ़्तार , आपाधापी और उन्माद मेंउसके दोनों ओर चलता रहता हैअनंत ट्रैफ़िक [पूरी कविता पढें …] […]

  5. […] पेसिफ़िक मॉल के ठीक सामने सड़क के बीचोंबीच खड़ा है देर से वह चितकबरा उसकी अधमुंदी आंखों में निस्पृहता है अज़ब किसी संत की या फ़िर किसी ड्रग-एडिक्ट की तीखे शोर , तेज़ रफ़्तार , आपाधापी और उन्माद में उसके दोनों ओर चलता रहता है अनंत ट्रैफ़िक [पूरी कविता पढें …] […]


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