भवानीप्रसाद मिश्र की एक कविता
लोग सब अच्छे हैं
कवि सब अच्छे हैं
चीज़ें सब अच्छी हैं
तुलनाएं मत करो
समझो अलग-अलग सबको
समझो अलग-अलग देखो —
स्नेह से और सहानुभूति से
एक हैं सब और अच्छे
चीज़ों की तुलना का
क्या अर्थ है
सब चीज़ें अपने-अपने ढंग से
पूरी हैं
और सब लोग
अधूरे हैं
कवि की अलग बात है
वह न चीज़ों में आता है
न लोगों में ठीक-ठीक
समाता है उस समय
जब वह लिखता होता है
जो संयोगों के अर्थों
और अभिप्रायों में पड़ा है
वह किससे छोटा है
किससे बड़ा है
एक ठीक कवि की
किसी दूसरे ठीक कवि से
तुलना मत करो
पढ़ कर उन्हें अपने को
अभी खाली करो
अभी भरो !
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* भवानी भाई,सिवनी-मालवा में लोक सम्मान(१९७३)
सच्चा दृष्टिकोण।
सकारात्मक है सबकुछ।
अच्छा
By: सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी on मार्च 29, 2011
at 7:00 अपराह्न
उत्तम विचार !
By: padmsingh on मार्च 29, 2011
at 7:23 अपराह्न
तुलना में दो अच्छी वस्तुओं में एक का नुकसान हो जाता है।
By: प्रवीण पाण्डेय on मार्च 30, 2011
at 2:49 पूर्वाह्न
’अभी खाली किया, अभी भरा ! ’
– आभार.
By: अफ़लातून on मार्च 30, 2011
at 2:55 पूर्वाह्न
कवि सब अच्छे नहीं. तथ्यत: गलत बात है. ऐसा होता तो राजेश जोशी को ‘अच्छे आदमी’ लिखने की फिर ज़रुरत न होती.
By: प्रमोद सिंह on मार्च 30, 2011
at 5:19 पूर्वाह्न
बहुत सुन्दर समझ विन्यस्त है !
By: amrendra nath tripathi on मार्च 30, 2011
at 6:33 पूर्वाह्न
हर एक की अपनी खूबी है….
By: abha on मार्च 30, 2011
at 6:44 पूर्वाह्न